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गुरु और शिष्य की हिंदी कहानी | Moral kahani in hindi

गुरु और शिष्य की हिंदी कहानी | Moral kahani in hindi
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Moral Story in hindi website par aapka swagat hai, yahan hum roj acche acche kahaniya post karte hai. Is post me hum guru aur shishya ki ek bahut hi acchi si kahaniyan likh raha hai aur sath me isi kahani ka ek cartoon video bhi post kar raha hun aap log jarur dekhe.

To aaiye suru karte hai is badhiya wali kahani ko..

एक समय की बात है।

एक गुरु और शिष्य घने जंगल के रास्ते से अपने आश्रम जा रहे थे। अँधेरा काफी हो चूका था।

तो शिष्य ने अपने गुरु से कहा – गुरूजी आज अँधेरा काफी हो चुका है और ये जंगल खतरों से खाली नहीं, क्यों ना आज रात आसपास के गांव में विश्राम करें?

गुरु जी ने कहा – हाँ वत्स, यही उचित होगा।

कुछ दूर चलने के बाद उन्हें एक कुटिया में रौशनी जलते हुए दिखाई दिया और वो दोनों उस कुटिया की तरफ आगे बढ़ने लगे। अब जैसे ही वो वहाँ पहुंचे, शिष्य ने दरवाजा खटखटाया और अंदर से एक गरीब आदमी दरवाजा खोल के बाहर आया।

गुरु जी ने उस गरीब आदमी से कहा – वत्स, हम अपने आश्रम जा रहे थे, आज अँधेरा भी काफी हो चुका है। क्या आज रात हम तुम्हारी इस कुटिया में विश्राम लेकर कल सुबह अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं?

उस गरीब आदमी ने कहा – आप दोनो के आने से मैं धन्य हो गया।आइये अंदर आइये और वो दोनो गुरु और शिष्य अन्दर गए।

गुरु जी ने देखा कि वो आदमी बहुत ही गरीब था।

गुरु जी ने उस गरीब आदमी से पूछा – हे वत्स,, तुम क्या करते हो?

उस गरीब आदमी ने कहा – गुरुजी, मेरे पास एक जमीन है।लोग कहते हैं कि वो एक बंजर जमीन है, उसमें कभी कोई फसल नहीं उग सकता।

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गुरु जी ने फिर उससे पूछा – तो तुम अपने गुजारा कैसे करते हो?

उस गरीब आदमी ने कहा – मेरे पास एक भैंस है। उसके दूध को बेचकर मैं अपना घर चलाता हूँ।

गुरुजी को अब सारी बात समझ में आ गयी और वो दोनों जाके सो गए।

अगली सुबह होने से पहले ही गुरु जी ने अपने शिष्य को उठाया और कहा – चलो, हम इसकी भैंस को अपने आश्रम ले जाते हैं।

शिष्य ने कहा – जिस आदमी ने हमें विश्राम के लिए जगह दिया, उसी की भैंस चुराना, क्या ये उचित है?

गुरु जी ने कहा – उचित अनुचित की बातें तुम मुझ पर छोर दो वत्स, और इस भैंस को अपने आश्रम ले चलो।

और वो दोनों उस भैंस को लेके अपने आश्रम चले गये, पर शिष्य को ये थोड़ा भी अच्छा नहीं लगा और वो ये चीज कभी भूल ही नहीं पाया।

ऐसे ही दस साल बीत गए। गुरुजी भी अब नहीं रहे। अब शिष्य भी बड़ा हो चूका था।        

वो निर्णय लिया कि क्यों न मैं उस गाँव में जाकर उस आदमी को एक बार देख के आऊँ।

उस गाँव में पहुँचने के बाद वो देखा कि वो गरीब आदमी अब बहुत ही अमीर हो चूका था।

उससे जाके वो पूछा – क्या आप मुझे पहचान सकते हो? मैं दस साल पहले अपने गुरुजी के साथ आपके घर आया था।

उस गरीब आदमी ने कहा – हाँ, मैं फिर से आपको देख कर धन्य हो गया।

जिस रात आप दोनों मेरे घर आए थे, उसकी अगली सुबह मैंने उठ के देखा तो आप दोनों जा चुके थे और मेरी भैंस भी कही भाग गयी थी। मेरे पास और कोई चारा नहीं था अपना गुजारा करने के लिए, तो मैंने उस बंजर जमीन पर ही दिन रात मेहनत करने लगा, और धीरे धीरे उसमे भी अच्छी फसल उगने लगी और उसी पैसों से मैं एक के बाद एक जमीन खरीदने लगा, और उसमे मेहनत करने लगा। उस वजह से मैं आज ऐसा अमीर बन पाया हूँ।

शिष्य को अब सारी बात समझ में आ गया था कि क्यों उसके गुरु जी इस गरीब आदमी की भैंस को उससे छुपा कर ले गए थे। उसे यह समझ में आ चुका था कि कोई भी इन्सान अपने आलसी और आराम की जिन्दगी छोर कर मेहनत करने से ही जिन्दगी में सफल हो सकता हैं।

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